This poem was written by me way back in 1999 in the backdrop of Kargil war and so it should be read in that context. When Pakistan PM accepted the invitation for attending Shri Narendra Modi's swearing in ceremony, I was painfully reminded of everything that was done by Pak under the pretext of friendship in 1999. I am reproducing this old poem here. We should be optimistic, but, at the same time pragmatic while dealing with Pakistan.
ऐ भारत माता के लालों, राष्ट्रभक्ति के अटल हिमालों
काश्मीर में आग लगी है सारा पूर्वोत्तर जलता है
अपना यह ना-पाक पड़ोसी हम को यूँ छुपकर छलता है
आज हमारी इस धरती पर उसने की मनमानी है
अगर तुम्हारा खून ना खौले, खून नहीं वह पानी है|
काश्मीर में आग लगी है सारा पूर्वोत्तर जलता है
अपना यह ना-पाक पड़ोसी हम को यूँ छुपकर छलता है
आज हमारी इस धरती पर उसने की मनमानी है
अगर तुम्हारा खून ना खौले, खून नहीं वह पानी है|
तुम भारत माता के लाल हो, तुम शत्रु के लिए काल हो
तुम प्रलयंकर का त्रिशूल हो, अर्जुन का गांडीव विशाल हो
आज एक रावण ने फिर सीता हरने की ठानी है
अगर तुम्हारा खून ना खौले, खून नहीं वह पानी है|
तुम प्रलयंकर का त्रिशूल हो, अर्जुन का गांडीव विशाल हो
आज एक रावण ने फिर सीता हरने की ठानी है
अगर तुम्हारा खून ना खौले, खून नहीं वह पानी है|
याद करो केसरिया बाना, मातृभूमि पर बलि चढ़ जाना
याद करो अपने पुरखों का सवा लाख से एक लड़ाना
संकट में भारत माता की लाज, तुम्हे बचानी है
अब भी तुम्हारा खून ना खौले, खून नहीं वह पानी है|
याद करो अपने पुरखों का सवा लाख से एक लड़ाना
संकट में भारत माता की लाज, तुम्हे बचानी है
अब भी तुम्हारा खून ना खौले, खून नहीं वह पानी है|
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