Sunday, June 29, 2014

न दैन्यं न पलायनम्

I had written this poem few years back. I was feeling low and writing this helped me lift myself up. I was ready to forgo my worries and fight again. It can be seen in today's context as well.
 
 
बाधाओं से भरा हुआ पथ, फिर भी तुमको बढ़ना होगा
आस तुम्ही विश्वास तुम्ही हो, समरवीर बन लड़ना होगा|
 
आज समय प्रतिकूल, भाग्य ने छोड़ा साथ तुम्हारा है
स्मरण करो तुम उनके वंशज, जिनसे यम भी हारा है| *
 
रचने से पहले मेंहदी को भी प्रहार सहना पड़ता है
स्वर्ण दहकता है अग्नि में तब सुन्दर गहना गढ़ता है|
 
मानव तन में रघुपति राघव बरसों बने रहे वनवासी
अग्निजन्मा द्रुपदसुता को बनना पड़ा और की दासी|

कर्म-भाग्य का द्वंद्व पुराना इसका पार नहीं है
भाग्य भरोसे बैठे रहना यह पुरुषार्थ नहीं है|

मार्ग रोकती बाधाओं पर वार करो और मार्ग बनाओ
कर्मयोग को मन में ध्या कर्तव्य के पथ पर दौड़े जाओ|
 
 
 
*Markandeya rishi was destined to have a short life. But, his immense devotion to Lord Shiva helped him defeat Yama, the lord of death, and live a long life.  

Sunday, May 25, 2014

अगर तुम्हारा खून ना खौले...


This poem was written by me way back in 1999 in the backdrop of Kargil war and so it should be read in that context. When Pakistan PM accepted the invitation for attending Shri Narendra Modi's swearing  in ceremony, I was painfully reminded of everything that was done by Pak under the pretext of friendship in 1999. I am reproducing this old poem here. We should be optimistic, but, at the same time pragmatic while dealing with Pakistan.


ऐ भारत माता के लालों, राष्ट्रभक्ति के अटल हिमालों
काश्मीर में आग लगी है सारा पूर्वोत्तर जलता है
अपना यह ना-पाक पड़ोसी हम को यूँ छुपकर छलता है
आज हमारी इस धरती पर उसने की मनमानी है
अगर तुम्हारा खून ना खौले, खून नहीं वह पानी है|
 
तुम भारत माता के लाल हो, तुम शत्रु के लिए काल हो
तुम प्रलयंकर का त्रिशूल हो, अर्जुन का गांडीव विशाल हो
आज एक रावण ने फिर सीता हरने की ठानी है
अगर तुम्हारा खून ना खौले, खून नहीं वह पानी है|
 
याद करो केसरिया बाना, मातृभूमि पर बलि चढ़ जाना
याद करो अपने पुरखों का सवा लाख से एक लड़ाना
संकट में भारत माता की लाज, तुम्हे बचानी है
अब भी तुम्हारा खून ना खौले, खून नहीं वह पानी है|

Tuesday, May 20, 2014

अच्छे दिन आ गए हैं

After a long time, I was inspired to write something in the form of a poetry. The inspiration for this has come from the speech of Shri Narendra Modi in the central hall of Parliament on 20th May 14.
 
उल्लास के नारे हैं, विजय के जयकारे हैं
समर्थकों की कतारें है, पुष्पों की बौछारें है
समस्याएं प्रचंड हैं, आत्मविश्वास अखंड है
कर्मयोगी नेतृत्व है, प्रगति का मार्ग प्रशस्त है
चुनौतियों से लड़ने को कटिबद्ध, देश जैसे हो रहा सन्नद्ध
सकारात्मकता और विश्वास मन मन पर छा गए हैं
लगता है सचमुच भारत के अच्छे दिन आ गए हैं