I had written this poem few years back. I was feeling low and writing this helped me lift myself up. I was ready to forgo my worries and fight again. It can be seen in today's context as well.
बाधाओं से भरा हुआ पथ, फिर भी तुमको बढ़ना होगा
आस तुम्ही विश्वास तुम्ही हो, समरवीर बन लड़ना होगा|
आज समय प्रतिकूल, भाग्य ने छोड़ा साथ तुम्हारा है
स्मरण करो तुम उनके वंशज, जिनसे यम भी हारा है| *
स्मरण करो तुम उनके वंशज, जिनसे यम भी हारा है| *
रचने से पहले मेंहदी को भी प्रहार सहना पड़ता है
स्वर्ण दहकता है अग्नि में तब सुन्दर गहना गढ़ता है|
स्वर्ण दहकता है अग्नि में तब सुन्दर गहना गढ़ता है|
मानव तन में रघुपति राघव बरसों बने रहे वनवासी
अग्निजन्मा द्रुपदसुता को बनना पड़ा और की दासी|
अग्निजन्मा द्रुपदसुता को बनना पड़ा और की दासी|
कर्म-भाग्य का द्वंद्व पुराना इसका पार नहीं है
भाग्य भरोसे बैठे रहना यह पुरुषार्थ नहीं है|
मार्ग रोकती बाधाओं पर वार करो और मार्ग बनाओ
कर्मयोग को मन में ध्या कर्तव्य के पथ पर दौड़े जाओ|
*Markandeya rishi was destined to have a short life. But, his immense devotion to Lord Shiva helped him defeat Yama, the lord of death, and live a long life.